दौर सतयुग का पुराना आ गया
दौर सतयुग का पुराना आ गया
आदमी को दिल दुखाना आ गया ।
घाव देकर मुस्कुराना आ गया ।।
जब छुआ लहरों ने आकर प्यार से ;
पत्थरो को मुस्कुराना आ गया ।
जिन घरों की नींव ही कमजोर हो ;
उन घरों का अब जमाना आ गया ।
एक बरगद रो पड़ा कल फूट कर ;
आँख पौधों को दिखाना आ गया ।
रात शाखों में उगी नव कोपलें ;
फिर बहारों का जमाना आ गया ।
आज फूलों ने गँवा दी सादगी ;
और काँटों को लजाना आ गया ।
लोग पत्थर दिल बताने लग गए ;
आँसुओं को जब छुपाना आ गया ।
गीत लिखकर प्रेम के सद्भाव के ;
आज हमको गुनगुनाना आ गया ।
आज अपराधी व्यथित हैं मौन हैं ;
दौर सतयुग का पुराना आ गया ।