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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Others

4.8  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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दौर सतयुग का पुराना आ गया

दौर सतयुग का पुराना आ गया

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आदमी को दिल दुखाना आ गया ।

घाव देकर मुस्कुराना आ गया ।।


जब छुआ लहरों ने आकर प्यार से ;

पत्थरो को मुस्कुराना आ गया ।


जिन घरों की नींव ही कमजोर हो ;

उन घरों का अब जमाना आ गया ।


एक बरगद रो पड़ा कल फूट कर ;

आँख पौधों को दिखाना आ गया ।


रात शाखों में उगी नव कोपलें ;

फिर बहारों का जमाना आ गया ।


आज फूलों ने गँवा दी सादगी ;

और काँटों को लजाना आ गया ।


लोग पत्थर दिल बताने लग गए ;

आँसुओं को जब छुपाना आ गया ।


गीत लिखकर प्रेम के सद्भाव के ;

आज हमको गुनगुनाना आ गया ।


आज अपराधी व्यथित हैं मौन हैं ;

दौर सतयुग का पुराना आ गया ।



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