अश्कों का सागर
अश्कों का सागर
बरसने लगा है
अश्कों का वो सागर
तुम्हारी आगोश में आते ही
जो सदियों से सहेजकर रखा था
हदय के किसी कोने में
तुमसे ना मिल पाने की
बेबसी का दर्द
जिसे छुपाकर रखा था
अन्तर्मन के किसी कोने में
आज फूट पडा़ है
सुनने दो आज
धड़कनों की वीणा के तार
इससे सुन्दर कोई संगीत
मुझे प्यारा नहीं लगता
बिखरी हुई हूं कब से
अब समेट लो मुझे खुद में
उम्रभर के लिए
सौगन्ध है तुम्हें !
अब जाना नहीं
वरना बह जायेगी ये समस्त दुनिया
आंसुओं के इस महासागर में
जो बहता रहे चिरकाल तक.....

