जादू सा
जादू सा
हमारा जब उससे दीदार सा होता है, वो शर्मा के पलकों को झुका लेता है ।
फिर जब झिझकते हुए देखता है, नादान सा, दिल की धड़कनों पर उसके काबू कहां होता है ।
छत्तीसों तरह का वो चेहरों को मनाता है, पागल-सा उसका मन, तितलियाॅं बन सा उड़ता है ।
हमें आजकल जुबानी भाषा की जरूरत नहीं पड़ती, बातों के लिए सिर्फ नजरों से नज़र का
मिलना ही काफी होता है । जनाब....
मेरे इन शब्दों में इतनी खूबी थोड़ी है, पर वो इंसान तो, मेरे उन शब्दों को जादू सा बुनता है वो ।
हमसे..वो जनाब तो आजकल बहुत शर्माता है, और मेरा मन तो उसकी शर्माहटों से ही
अनकही बातें मुझसे करता है,
वो मेरी कविता को ऐसे बुनता है..आजकल मेरी वो कविता सा बनता है..

