चाहे कितना भी गणतंत्र आए
चाहे कितना भी गणतंत्र आए


चाहे कितना भी गणतंत्र आए,
हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।
आज जंजाल इतना बढ़ा है, सामने जैसे दानव खड़ा है।
ग़रीबी बढ़ी है, बीमारी बढ़ी है,
बेरोजगारों की फौजें खड़ी है।।
भ्रष्ट नेताओं से खुलके पूछो, जो बस कुर्सी के खातिर पड़े हैं।
चाहे कितना भी गणतंत्र आए हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।।1।।
मीडिया को बिगाड़ा इन्होंने
, धर्म अपना न जाना इन्होंने।
आज हड़ताल जितना भी कर लो
बात मेरी न माना इन्होंने।।
लड़ा करके लोगों को हर पल,
देश बर्बाद हो यूं अड़े हैं।।
चाहे कितना भी गणतंत्र आए, हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।।2।।
शिक्षा महंगी हुई है हमारी,
आमजन के जो वश में नहीं है।
अनपढ़ों की है
संख्या अब इतनी, देश की जो अब दुश्मन बनी है।।
अशिक्षित हैं हम आज इतने, शिक्षा में सबसे पीछे पड़े हैं।
चाहे कितना भी गणतंत्र आए, हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।।3।।
देश में द्वेष इतना बढ़ा है,
भाईचारे की अर्थी सजी है।
भ्रष्ट नेता हैं सत्ता में बैठे,
आज खतरे की घंटी बजी है।।
बस उठाने को अर्थी हमारी, सिर मुड़ा करके पीछे पड़े हैं।
चाहे कितना भी गणतंत्र आए, हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।।4।।
भूल थी उन शहीदों की मेरे,
व्यर्थ फांसी के फंदे चढ़े जो ।
सिर कटा करके खा करके गोली,
आज आजादी हमको दिए जो।।
भ्रष्ट नेताओं से है अब लड़ना,
जो हमको जलाने चले हैं।
चाहे कितना भी गणतंत्र आए, हम वहीं के वहीं पर खड़े हैं।।5।।