सासों के चलने तक
सासों के चलने तक
बचपन की स्मृतियाँ..माँ,पापा के साथ बिताया वक्त..
उनका प्यार..भाई बहन के साथ खेल-खेल में
सीखे अनूठे प्यार..मासूमियत भरे प्रश्न में घूमते
जलेबियों वाले उत्तर..कितने मुस्कान समेटे हैं..
बचपन के साथी और उन्हीं में बसी दुनियाँ..
न वक्त की फिकर..न जमाने का डर..
यादों के गुल्लक में रखे खोए,पाए
बचपन की अशर्फियाँ....आज भी उनमें खोज रहे हैं
अपने अस्तित्व को..कितने सरल थे,
वक्त के मिज़ाज..आज नए पाने की तलाश में
कितना कुछ छूट गया..और कितना छिन गया..
कितना कुछ खो देते हैं और कितने खो जाते हैं !
वक्त के साथ साथ बस मेरे साँसों के चलने तक ...!!
बहुत बुलाते हैं वो रास्ते मुझे आज भी जहाँ मैं कभी जा भी नहीं सकते ...!!
