मौन
मौन
खड़ा हूं अकेला बाहें फैला कर,
प्यार अपना सारा,तुम पर लुटा कर,
मन के स्पंदनों को ही तोलता हूं,
हां अब मैं मौन से बोलता हूं।
कांपते होठों में मेरे हैं कई बातें,
खुली आंखों में मेरे कई स्याह रातें,
तुम देखो तो समझो,जानो तो झूमों,
पता तुम्हारा ही लेकर तुम्हें ढूंढता हूं
मैं मौन से अपने बहुत कुछ बोलता हूं।
मेरे वही तराने, हां लगते तो हैं पुराने,
हूं उसी सुर में अटका, गुजरे कई जमाने,
तुम आओ तो मानो ,तुम गाओ तो जानो
हर लब्ज़ में तुम्हारा अहसास घोलता हूं,
हां मन के स्पंदनों को ही तोलता हूं,
अब मौन से अपने बहुत कुछ बोलता हूं।