पोशाक
पोशाक
एक तंग गली जिसमें कि सूर्य
कठिनाई से घुस पाता है,
मिलती पोशाकें भगवन की,
ऐसा पढ़ने में आता है।
मन में कौतूहल जाग गया
कैसे वस्त्र भगवान को भाए होंगे,
बुलाते हैं वो अपने घर में,
या दुकान पर नाप देने आये होंगे ।
जिनमें ब्रह्मांड समाहित हैं,
कैसे उनको मापा होगा,
जिनमें समाएं होंगे प्रभु,
बड़ा अद्भुत वह नापा होगा।
अंगों के आकार का उस पर
पूरा सटीक लेखा होगा,
क्या नियति है उस दर्जी की
जिसने प्रभु को देखा होगा,
जब नापे होंगें भगवान के पग
स्पर्श तो उनका हुआ होगा,
है धन्य धन्य वो व्यापारी
जिसने प्रभु को छुआ होगा।
मंदिर जाती इन गलियों की
खुद में अजब कहानी है,
प्रभु के किस्से सबके अपने
सबकी अलग जुबानी है।
भारत अद्भुत जिसमें कि शिवम्
टपली पर भी मिल जाते हैं,
है कठिन डगर इस जीवन की
पर हंस कर सब जी जाते हैं।
ये श्रद्धा है जो पत्थर को भी
भगवान बना कर जाती है,
हरि के बंदे, हरि बोल बोल,
घर कितनों के चलवाती है।
ये सकरी गलियां मेरे भगवन का
आकार न जाने, कैसे हो?
जब सारे साधन हैं ईश्वर से
फिर, आभार न माने,कैसे हो?
मेरा है नमन हे पुण्य धरा!
ऐसे ही सदा तुम पुण्य रहो,
परिहास मेरा, रहे, न रहे,
तुम सदैव अक्षुण्य रहो।।
