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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Inspirational Others

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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Inspirational Others

मोदी जी

मोदी जी

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थी तिथि सत्रह और दिन रविवार,

गणतंत्र की जिस वर्ष बही बयार,

थी भूमि वडनगर जिला मेहसाना,

बॉम्बे में आपका हुआ आना।


धन्य गोद मां हीराबेन की की,

श्री दामोदर दास को हर्ष दिया,

तीसरी संतति के रूप में जब

बेटे नरेंद्र ने उत्कर्ष किया


बचपन वडनगर बस अड्डे पर

चाय चाय चिल्लाता था,

छोटा बालक पढ़ता भी था

पिता संग हाथ बंटाता था।


चूल्हे के धुएं से लाल हुई

कातर आँखें रोते देखीं,

आठ जनों के पालन को

मां घर घर बर्तन धोते देखीं।


तेरह थी उमर जब जीवन में 

बेन जसोदा आई थीं,

नहीं हुए थे पूरे अठरह के

जब तुमसे व्याह रचाई थी।


तुम चंचल थे पर थे कुशाग्र

तुम ही तो बतलाते हो

बड़े चाव से खेल खेल में

पकड़ मगर को लाते हो


इतना ही पता है मुझको

तुमको न बांध सके बंधन,

तुमने घर छोड़ा छोड़ा था गांव

और तोड़ दिए सब गठबंधन,


तुममें पुकार उस ईश्वर की

जब प्रबल हुई, विकराल हुई

गोद हिमालय की तुमसे

कुछ वर्षों तक निहाल हुई


तुम लौटे तो पर ईश्वर की

अनुपम सी कृपा को साथ लिए,

व्रत करता हो योगी कोई

मन ही मन कोई जाप लिए।


विद्यालय से डिग्री तक

आजाद मनस बेफ्रिकी तक

मुक्तिवाहिनी जनसंघ चुनी

तिहाड़ जेल भी रहे मुनि।


सेवा जब मन में प्रबल हुई

तो स्वयं सेवा से लगाव हुआ

मोदी के जीवन में फिर

राजनीति का प्रादुर्भाव हुआ


आपातकाल जैसे कोई

मंथन करने का समय बना

है गर्व नानक की धरती से

तुमने वेश सिख भाई का चुना।


फिर बीजेपी में आ पहुंचे

सेवा की लगन पद भी लाई

रथ चला राम का प्रभु आज्ञा से

ख्याति बड़ी तुमने पाई


बीते कुछ साल उस दशक के जो

संगठन तुमसे बलवान हुआ

सबने माना लोहा तुमसे

जब बीजेपी का मान हुआ।


था अक्टूबर जब पहली बार 

तुम राज्य शीर्ष पर शोभित थे

मोदी मोदी के नारे से

गुजराती मानस छोभित थे


गुजरात हिला जब 26 को

खुद को झोंका तुम फनिग दिखे

गोधरा के जैसे नीच खेल

तुम मजबूत शिला से अडिग दिखे


तुम चार बार और लगातार

मुखिया सूबे के चुने गए

चौखट चूमी फिर संसद की

जन जन के सपने बुने गए।


तब से अब तक मैंने मां को

बनते ही संवरते देखा है

जो रूप कुरूप हो चला था जो

सुंदरता को उफनते देखा है


भारत माता कहने वाला 

संघी सेवक पद पर बैठा

फिर से जाग गई शक्ति

सेना का मनोबल चढ़ बैठा


भारत का मान हुआ जग में

भारत फिर से बलवान हुआ

फिर से जागी ये ईश भूमि

अम्बर से ऊंचा स्वाभिमान हुआ


सत्य सनातन संस्कृति ये

नव पल्लव फिर से उपजाने लगी

जो मट्टी धूसरित हो गया था वो

ज्ञान सभी को बताने लगी


हो काशी या प्रयागराज 

दुनिया को फिर से पुकारा है

मथुरा और अयोध्या बता रही

कि युग चल रहा हमारा है


हम सूर्यवंश के वंशज हैैं

शेरों के दांत गिने हमने

अब देख रही दुनिया फिर से

सीना जो लगा फिर से तनने 


क्या कह दूं मुझको पता नहीं

कैसे धन्यवाद ज्ञापित कर दूं,

महिमा जिसकी हो ग्रंथों सी बड़ी

कैसे एक कविता में कह दूं।


तुम मेरे घर के हो बुजुर्ग

हर निर्णय है स्वीकार मुझे

प्रशस्त करो तुम मार्ग नए

हर पल का है आभार मुझे


तुमको जो तुम मैं लिखता हूं

लगता होगा अपराध मुझे

उस ईश्वर के सामान ही तो

लगते हो तुम आराध्य मुझे


मैंने न देखे भगत सिंह

जिनसे डर गई थी फांसी

मैंने न देखी लक्ष्मी वो

न दी जिसने यूं ही झांसी

मैंने आज़ाद नहीं देखे

जो सब कुछ अपना वार गए

नहीं मिले मुझे बिस्मिल

जो हंस कर जन्नत के द्वार गए।


पर मैं देख रहा हूं मोदी को

जिनका आदर करती है घड़ी

युगपुरुष है जो महापुरुष है जो

पर जिसको इस सब की नहीं पड़ी 


उसकी तो जिद है वही सोच

जो हर संघी के सपनों में पलती 

इतना आगे जाए अपना भारत

ये दुनिया आँख रहे मलती 


ईश्वर दे आयु और आरोग्य

शरीर और भी पुष्ट बने

वसुधा कुटुंब गूंजे सदैव

जीवन सबके संतुष्ट बने



इक बात हृदय की कहता हूं

खुद को रोक नहीं पाऊंगा अब

जो लगे गलत तो क्षमा करें

पर अभी नहीं तो कहूंगा कब


ईश्वर को भी नहीं मिला हूं मैं

.


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