शीर्षक:अनुभूति
शीर्षक:अनुभूति
आज भी वही मुलाकातें, बातें, वादे, इरादे
वही आंतरिक अनुभूति की सिहरन सी
मुझे स्वयं के भीतर कराती अहसास
कि काश न किया होता स्वयं से समझौता
आज भी वही अनुभूति
मेरे शांत मन को उद्वेलित करती
मानो समुद्र में कुछ हलचल सी हुई हो
सभी बातें, वादे, इरादे मानो सामने आकर
खड़े हो जाते हो मेरे अनेकों प्रश्नों के साथ
आज भी वही अनुभूति
आज भी एकाग्र नहीं कर पा रही हूँ स्वयं को
गहरे गड़ी यादों की जड़े मानो अतल तक हो
अंतस्तल से ही मिल रहा हो यादों की जड़ो को स्वाद
शायद कभी भी यादों का घाव हरा हो उठता हैं
आज भी वही अनुभूति
मेरी प्रीत को नहीं देख पाया गहरे तक शायद
नहीं हुई उसकी पहुंच बहुत गहराई तक
एक बार खरोंच कर तो देखता मेरे मन को
शायद स्वयं को ही पाता उन खरोंचों के नीचे भी
आज भी वही अनुभूति
आज भी ठहरी हुई यादें इंतजार में
मानो संग किसी यात्रा को तैयार
यादों के सफर को सार्थकता देते हुए
सुखद सी यादों की यात्रा के सफर पर बढ़ने को
आज भी वही अनुभूति।
