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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"हर वक्त सवेरा"

"हर वक्त सवेरा"

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जब जागो तुम तब होता है, सवेरा

गर आंखें बंद हो क्या, करेगा सवेरा?

आंखें खुली पर, पर्दा पड़ा हो, घनेरा

उसके लिए रवि भी देता है, अँधेरा


बाहर चाहे कितना फैला हो, अँधेरा

पर जिसके भीतर रोशनी का फेरा

उसके लिये हर वक्त रहता है, सवेरा

कर्मवीर हेतु, संजीवनी बूटी है, सवेरा


भोर का वक्त, मन एकाग्र होता, मेरा

जो पढ़ते वो याद होता जाता, चेहरा

कर्मशक्ति का होता इस वक्त, बसेरा

जग बाते कर अनसुना, हो जा बहरा


यही बात हमे नित सिखाता है, सवेरा

कोई कर्म करे न करे, तू कर्म कर तेरा

जो जलता है, नित कर्मअग्नि में चेहरा

वो अवश्य ही बनता है, स्वर्ण सुनहरा


अब छोड़ भी दे तू करना, मेरा-मेरा

हर वक्त नहीं रहता है, रोशन सवेरा

बढ़ती, उम्र साथ हो जाता है, अंधेरा

वक्त रहते प्रभु नाम ले, मिटे सवेरा


डूबता नहीं कभी उस नाव का चेहरा

जो सही समय पर, निर्णय लेता, गहरा

जिसके भीतर जले कर्म दीप सुनहरा

उसके लिये हर वक्त ही रहता, सवेरा



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