अपराजिता
अपराजिता
अपराजिता हूँ,अपराजिता रहूं मैं
है नहीं मेरा सपना और कोई
गिरती रहूं ,उठती रहूं मैं!
उबड़ खाबड़ राहों पर संभलती रहूं मैं
शिकवा शिकायत न कोई
आंसू बहाती न रहूं मैं !
दुनिया की टीका टिप्पणी सुनती रहूं मैं
फ़र्क न पड़ा,न पड़े मुझे कोई
टूटना न सीखा न जानूं मैं!
आदर सम्मान औरों का करती रहूं मैं
मगर अपमानित मुझे करे कोई
अपने तेवर दिखाना जानूं मैं!
विचक्षण शक्ति अपनी,पहचान रही हूं मैं
जाने यह सच या न जाने कोई
क्यों इसका ऐलान करूं मैं!
अपराजिता मैं
परिभाषित कर रही हूं मैं गरिमा है क्या,
जाने न जाने कोई-
अपने आयाम करूं निश्चित मैं!
अपराजिता हूँ,अपराजिता रहूं मैं
हक किसी का नहीं मुझपर कोई
अपनी सीमा निश्चित करती रहूं मैं
--------------
