जी चाहता है
जी चाहता है
वैसे तो मुकद्दर से मात खाए हुए है,
फिर भी न जाने क्यूं इसे और
एकबार आजमाने को जी चाहता है।
यकीन ही नही था
क्या ख्वाब भी मुकम्मल होते है कभी ?
सच्चे दिलवाले जहा में मिलते भी है कभी ?
तेरा साथ पाकर अब नए ख्वाब सजाने को जी चाहता है।
निकले थे अकेले ही अपने वजूद की तलाश मै,
मिले हो तुम ऐसे, जैसे कोई धारा मिली हो प्यास मै
हाथ थाम कर तेरा,
हर सफर तय करने को अब जी चाहता है।
हम भी तो तलबगार थे वफा ए बूंद ईश्क के,
मिल गया समंदर, अब उसीमे डूब जाने को जी चाहता है।
दफन हुई पड़ी थी दिल मै
जो मुहोब्बत कई बरसों से,
आज उसी चाहत को,
फिर से जिंदा करने को अब जी चाहता है।

