खिड़किया खालीपन की
खिड़किया खालीपन की
तन्हाइयों मैं जिनका कोई सहारा नहीं होता,
तकिए से बेहतर उसका कोई हमदर्द नही होता।
यूं तो उठते है लाख जनाजे मगर,
मरे हुए दिल का कोई मातम नहीं होता।
झेले होंगे कई घाव उस मासूम दिल ने भी,
यूं ही दिल किसका पत्थर सा नही होता।
करलो लाख कोशिशें पत्ते लगाने की,
पतझड़ में पेड कभी हरा नही होता।
नही भर सकता वक्त हर ज़ख्म ए जहन का,
रोएंगे किसी दिन वो भी जिन्होंने किसीको रुलाया होगा।