आँखें
आँखें
बहुत कुछ कहती है आँखे
नदियों से ज्यादा बहती है आँखें,
घाव इनके दिखते नही पर,
बहुत कुछ सहती है आँखें।
दिल में उठे तूफानों को,
किनारों पे बसाती है आँखे,
जुबा से निकले लब्जो संग,
लहजा भी पढ़ लेती है आँखे।
सपनो के समंदर में डुबोती है आँखे,
फिर वही सपनो की रांख पर
आंसु बहाती है आँखें।
इल्जाम है इन पर काफिरों के कत्ल का,
फिर अपनी गवाही
खुद ही देती है ये आँखें।
अनकहे अल्फाज भी भाँप लेती है आँखे,
इस रंगीन दुनिया के हर रंग दिखाती हैं आँखे।
इतनी मशरूफियत में भी निखरती आँखें,
एक "काजल" से संवरती आँखें,
मीट जाती है शख्सियत मगर,
मरकर भी जिंदा रहती है आँखें।