STORYMIRROR

kajal ni kalame

Abstract

4  

kajal ni kalame

Abstract

आँखें

आँखें

1 min
247

बहुत कुछ कहती है आँखे 

नदियों से ज्यादा बहती है आँखें,

घाव इनके दिखते नही पर,

बहुत कुछ सहती है आँखें।


दिल में उठे तूफानों को,

किनारों पे बसाती है आँखे,

जुबा से निकले लब्जो संग,

लहजा भी पढ़ लेती है आँखे।


सपनो के समंदर में डुबोती है आँखे,

फिर वही सपनो की रांख पर

आंसु बहाती है आँखें।


इल्जाम है इन पर काफिरों के कत्ल का,

फिर अपनी गवाही 

खुद ही देती है ये आँखें।


अनकहे अल्फाज भी भाँप लेती है आँखे,

इस रंगीन दुनिया के हर रंग दिखाती हैं आँखे।


इतनी मशरूफियत में भी निखरती आँखें, 

एक "काजल" से संवरती आँखें,

मीट जाती है शख्सियत मगर,

मरकर भी जिंदा रहती है आँखें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract