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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Romance Others

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

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अजनबी मुलाकात

अजनबी मुलाकात

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राह चलते एक शाम अजनबी मुलाकात हो गयी,

मुलाकात होते ही आंखों ही आंखों बात हो गयी।

आंखों ही आंखों क्या बात हुई जादू सा कर गयी,

पता नहीं हुआ क्या? नजर वह मदहोश कर गयी।


राह का मिलन ये खूबसूरत ख्वाब सा सज गया,

उस अजनबी को पाना जीवन लक्ष्य ही हो गया।

क्या हुआ ऐसा कुछ नशा सिर में चढ़ता ही गया,

तालू से चिपके शब्द आंखों में सुरूर यूं बढ़ गया।


राह में मिला अजनबी दिल की धड़कन बन गया,

वह अजनबी भाभी संग हमारे घर में ही आ गया।

देखकर डरे ,हम तो बोले भी न ये क्या हो गया?

कशिश दोनों तरफ की ,घर वालों को भा गया।


भाभी बहन की सहेली, मैं शर्म से पानी हो गयी,

अजनबी वह मुलाकात जीवन धारा बदल गयी।

अजनबी सबसे खास अजीज गजल मिल गयी,

आज हम उनकी जानेजां बच्चों की मां बन गयी। 


उनसे ,अजनबी मुलाकात कैसे खास बन गयी,

जैसे पूर्णिमा के चांद से धरा में चांदनी सज गयी।

मैं सप्त सुरों सी सरगम की मधुमय तान हो गयी,

साथ चल अजनबी की मधुर लहरी गान हो गयी।

          



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