शृंगार दोहावली
शृंगार दोहावली
शशि मुख निर्मल देखकर, मन चकोर मुस्काय।
प्रिय की छवि मन में बसी, आँखें नहीं अघाय॥१॥
नयनबाण उर पर चलें, होता मन बेचैन।
चैन हृदय किंचित मिले, सुनकर मीठे बैन॥२॥
हैं अधर मधुर रस भरे, करते अनुपम शान।
अधरों की चाहत जगे, हो मधुमय रसपान॥३॥
चंद्रकांत सम मन गले, शशि सम लख प्रिय रूप।
शीतरश्मि दाहक बने, कैसा मेल अनूप॥४॥
आँखों से आँखें मिलीं, मिला चित्त से चित्त।
अति आनंद हृदय जगा, मानो मिला सुवित्त॥५॥
परिजन हों यदि संग में, दोनो बैठे पास।
चंचल मन सोचे यही, कैसे हो परिहास ॥६॥
प्रियतम मम जब से गए, किया नहीं है फोन।
सदा निहारूँ फोन को, बजती नहीं क्यों टोन॥१॥
एकाकी खुद को लगे, हो कितनी भी भीड़।
प्रियतम जल्दी आ मिलो, भर जाएगा नीड़॥२॥

