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Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Others

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Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Others

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार

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बदला जग का हर व्यवहार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार॥


लालच वश में हो गया प्यार 

दुनिया इससे है लाचार 

धन ही केवल रह गया यार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार 


दिखावे में तो करते प्यार 

दिल से हो गए हैं खूंखार 

मौका पाते करते मार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार 


बही हवा है कर लो प्यार 

पर रहता नहीं उसमें सार 

बनाए रखना लगता भार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार 


धोखों का है सजा बाजार 

टूटी मर्यादा की तार 

छोड़ा हर जीवन का सार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार


कहते सब वासना को प्यार 

जो केवल है तन व्यापार 

बाधा आती पड़े दरार 

बढ़ा प्रेम में भ्रष्टाचार 



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