अरुण प्रभा प्रसरित करते
अरुण प्रभा प्रसरित करते
स्वर्ण शिखर के अंतर से
हेमकांत को धवलित करते
मरीचिमाली उदयाचल आकर
अरुण सारथी के बल भू पर
अरुण प्रभा प्रसरित करते।
शस्य श्यामला भू के तल पर
फसलें अपने नवलकोष के
मुक्ता दानों के अंतर में
स्वर्ण शक्ति को पल-पल भरते।
नभमंडल में मेघ मनोहर
मन से अपने विविध रूप धर
कनक कान्ति भास्कर से लेकर
जन मन को अब हर पल हरते।
अद्भुत रूप इला अंबर का
भासित होता देख स्वर्ग से
मान बढ़ाने अपना सुरगण
रवि से पहले भूपर आते।
नर तन मन की शक्ति बढ़ाने
उन्नति की सीढ़ी चढ़ जाने
श्रम मंत्र को उर में धरकर
श्रम साधना में जुट जाते।
