छोड़ आए वे गलियाँ
छोड़ आए वे गलियाँ
आज खड़े हैं जहाँ पर
राहें वह मुश्किल थी कभी
चल पड़े तब हिम्मत कर
टोक रहे थे जब सभी
ना की चिंता, ना तकरार
सजी थी सेज़ कांटों की
करना था उलझनों को पार
इम्तिहान अभी कुछ थे बाकी
समय कर रहा था वार
रोज आती सामने चुनौती नयी
किसी ने ना सुनी पुकार
मदद की आशा बेकार गयी
उन घड़ियों का कठोर प्रहार
सिखा गया अजब सी खेलियाँ
लिया जिंदगी को खूब संवार
छोड़ आए आखिर वे गलियाँ।
