समर्पण
समर्पण
झुकाओ सर अदब से, ऐ देशवासियों !
फिर एक सपूत लो शहीद हुआ।
भारत मां का गौरव बचाने को,
खुद का जीवन उसने समर्पित किया।
रात - दिन अविरत उसने पहरा देकर
सीमाओं की सुरक्षा का जिम्मा लिया।
घर - द्वार की अपने चिंता छोड़कर
देश की सरहदों को मजबूत किया।
खाना, सोना, ना घरवालों से मिलना
जंगलों, दुर्गम पहाडों को पार किया।
ना कोई गिला, न कोई शिकवा
हर मुश्किलों का मुस्कुराकर सामना किया।
दुश्मनों को गोली का बनाकर निशाना
आतंकवादियों का मनोबल ही तोड़ दिया।
घुसपैठियों से करके जबरदस्त कड़ा मुकाबला
कौम से बाहर उनको खदेड़ दिया।
बाढ़ हो , या कोई भूकंपग्रस्त इलाका
सबसे पहले सैनिक वहां पहुंच गया।
जान की अपनी पर्वा किए बिना
राहत-कार्य को आख़िर अंजाम दिया।
जिम्मेदारियों को अपनी निभाते - निभाते वह
भारत का वीर जवान है कहलाया।
तिरंगे को कफ़न बनाकर ओढ़ा और
चिरनिद्रा में आखिर वह सो गया !