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Pratibha Bilgi

Tragedy

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Pratibha Bilgi

Tragedy

गहरे जख़्म

गहरे जख़्म

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जख्मों का कोई हिसाब नहीं

अब तो वह नासूर बन चुके है

गहराई इतनी है अब इनकी

नापना इन्हें जैसे नामुमकिन हो गया है .....


चोट पहुँचाते है अपने ही

और वहीं मरहम लगाने चले आते है

परवाह नहीं उन्हें जख्मों की

दर्द मेरा महसूस होता ही नहीं है


गुंजाइश नहीं कतई रहम करेंगे

ऐतबार का यहाँ कोई मोल नहीं है

कैसे भरेंगे गहरे जख्म मेरे

इस जहान का तो दस्तूर यहीं है।


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