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Pratibha Bilgi

Romance Classics

4  

Pratibha Bilgi

Romance Classics

कैफे की कहानी

कैफे की कहानी

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एक दिन बैठी थी 

कॉफी की चुस्कियाँ लेते हुए 

मेरे सबसे पसंदीदा कैफे में 

ज्यादातर मेरे बैठने की जगह 

वही होती थी, एक कोने में 

जहाँ गमले रखे थे फूलों के 

और कृत्रिम पानी का झरना बहता था 


वह पानी की कलकल, 

बड़ी मधुर सुनाई देती थी 

फूलों की गंध मन को भाती थी 

आज मौसम कुछ ज्यादा ही सुहाना था 

रह-रहकर अकेलापन सता रहा था 

क्या वह दिन कभी आएगा ? 


जब मेरी जिंदगी का 

वह खाली अंधेरा कोना 

रोशनी से भर जाएगा 

आँखों में सपने जगाएगा 

होठों पर हल्की मुस्कान बिखेरेगा 

यहीं सोचते हुए 

कॉफी के घूँट पी रही थी 


तभी अचानक वह आकर मुझसे बोला 

क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूं ?

उसका चेहरा शांत था 

बस आँखें बोल रही थी 

मैंने भी हाँ में सिर हिलाया 

बातों ही बातों में पहचान हुई 


और एक प्याली कॉफी की फरमाइश हुई 

वह शाम यादगार बन गई 

आखिर मेरे साथ बैठ कर इत्मीनान से 

कॉफी की चुस्कियाँ लेने वाला 

मिल गया था मुझे 

दुआ दे रहा था मन मेरा 

उस कोने को जहाँ मैं बैठी थी


बैठा करती थी हमेशा

तभी से शुरू हुआ 

मेरी जिंदगी का खूबसूरत सफर 

और यहीं से शुरू हुई थी मेरी कैफे की कहानी।


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