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Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Others

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Ganesh Chandra kestwal

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जय काल भैरव

जय काल भैरव

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॥ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः॥

           जय काल भैरव 

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अष्ट वर्ष की वयस मनोहर, सिर पर धारे कुंचित केश। 

शक्ति समेटे निज तन में वे, कार्य साधने नित्य अशेष। 

भक्त सभी नित कृपा-कांक्षी, माँगे उनसे शुभ आशीष।

अमित कृपा से भैरव बाबा, सींचे उनका अवनत शीश॥१॥


उग्र क्रोध श्री भोले जी का, भैरव इस जग में कहलाय।

अति भयकारी स्वरूप जिनका, पाप चित्त को बहुत डराय।

निंदाकारी ब्रह्मवाणी ने, शंकर का था क्रोध जगाय।

अष्ट वर्षवय बालक रूपी, भैरव काल रूप बन आय॥२॥


ब्रह्मशीश था जो कटु वादी, शीघ्र काटकर उसे गिराय। 

अहंकार भी उनका सारा, पल भर में ही दिया मिटाय।

अधिपति भोले विश्वनाथ ने, महिमा अपनी महा दिखाय।

कोतवाल अपनी काशी का, भैरव को था दिया बनाय॥३॥


देवभूमि गढ़वाल धरा में, गढ़ लंगूर जगत विख्यात।

महिमा इसकी बहुत बड़ी है, सभी जनों को है यह ज्ञात।

नित्य काल भैरव जी करते, इस गढ़ में भी अपना वास।

पूरी सबकी करते वांछा, पूज्य सभी के वे हैं खास॥४॥



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