STORYMIRROR

Rajeev Rawat

Romance

4  

Rajeev Rawat

Romance

तुम झूठी हो-दो शब्द

तुम झूठी हो-दो शब्द

1 min
286


तुम्हारे अहसासों के बोये बीज

अब दरख्तों की तरह फैल कर मेरे अंतर्मन को भिगोने लगे हैं--

और

हम पागलों की तरह तुम्हारी 

यादों की परिछायी अपने सीने से ही लिपटा कर न जानें क्यों रोने लगें हैं--


याद है तुम्हें

जब साहिल पर बैठे बैठे तुमने मेरे कांधे पर

अपना सर रखे हुए दूर डूबते हुए सूरज को देखते हुए कहा था की हमारे प्यार का

सूरज कभी डूबने तो न दोगे--

जब भी जीवन की राह में 

तूफानों और बंबडर के सैलाव आयेगें तुम मुझे आगे बढ़कर थाम लोगे--


मेरे सीने की डायरी के कितने पन्ने 

तुम्हारी नाजुक उंगलियों की पोरों से प्यार के अहसास को पिरोते हुए दिखे--

जब भी पलटता हूं 

धुंधले शब्दों में ही सही 'मैं तुमसे प्यार करती हूं' के अक्स हर पन्ने पर दिखते हैं लिखे--


उस घर की हर दीवार पर 

तुम्हारी आशाओं और आकांक्षाओं के रंग अब भी 

वैसे के वैसे दिखाई देते हैं---

बस खाली दीवालों पर 

अंधेरों के आंचल में कहीं से सिसकियों के बोल सुनाई देते हैं--


वह भी दीपावली की रात थी 

जब तुम मेरे दिल के अंधेरे आंगन में 

चुपके से अपने प्यार और अहसासों के दीप जला गयी थी--

और मेरे समुद्र की तरह 

खारे पानी के अंतर्मन की गहराई में छिपी सीप में मोती बन कर आ गयी थी--


मैं जानता हूं कि तारा बन कर भी

तुम मेरे लिए ही आसंमा पर आती हो--

मेरे बालों में उंगलियों को फिरा कर अपने सीने पर तकिये मानिंद सुलाती हो--

याद है तुमने थाम कर मेरी ऊंगलियों को अपनी हथेलियों में

आहिस्ता से कहा था

तुम से दूर जाना मेरी ज़िंदगी की रुसवाई होगी-

और वही हमारी आख़िरी विदाई होगी-

लेकिन

जीवन भर साथ निभाने की कसम खाकर भी क्यों रूठी हो-

तुम बहुत अच्छी हो, बस झूठी  हो--



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance