मेरे वह पल--दो शब्द
मेरे वह पल--दो शब्द
नयना तेरी ही तो राह ताकते, हर- पल मरते जीते थे
वह मेरे पल वापिस कर दो, जो तेरे इंतजार में बीते थे
वह मेरे अहसास वो सिहरन, वो दिल की धड़कन दे दो
वो अक्षत यौवन, खिलती कलियां, वो मेरा मधुवन दे दो
वापस कर सकते वो धड़कन, जो तेरे लिए ही धड़की थी
वह आँखों की प्यास जो तुझे ही, देखने हर पल तरसी थी
दे सकते हो यदि मुझको वापस, वह मदमाती श्वास भी दो
वो नर्म दूब सी गोदी अपनी, वो प्यार भरा आकाश भी दो
तेरी चाहत में पागल दिल, सोचूं इश्क का क्या सुरूर था
सच कहना, इस प्रेम लगन में, मेरे दिल का क्या कसूर था
तेरी धड़कन भी मेरे दिल की आवाज़ बनी थी धड़कन की,
जी ना पाये जिन लम्हों को, दिल को उन पर ही गुरूर था
आज पलों का हिसाब किया तो, दोनों हाथ मेरे रीते से
वह मेरे पल वापिस कर दो, जो तेरे इंतजार में बीते थे
दर्द तेरे थे और आंसू मेरे, कुछ रिश्ता दिल का था मेरा
नींद हमारी और नयन हमारे, पर उनमें ख्वाब था तेरा
जब तेरी गोदी में सिर रख कर, चांद भरी उन रातों में
कितना शीतल, बहता दरिया, तेरी मीठी मीठी बातों में
वो नगमें वो गजले दे दो, जो तुमने लिखे थे मेरे अधरों पर
वो आंखों के तीर जो छुपके, तुमने मारे थे मेरे कजरों पर
वो पानी की रिमझिम बूंदें, जिसमें भीगा बदन हमारा था
वो सुबहा, वो ढलती सांझे, जहां हाथों में हाथ तुम्हारा था
वो बहती चंचल सी हवाएं और वह नदी का किनारा था
वह सपनों की दुनिया अपनी, एक दूजे का ही सहारा था
वापस करना है यदि मुझको, मेरे अनछुये अहसास करो
वो धरती सपनों का आंगन और तारों भरा आकाश करो
दुनिया के तानों से डर कर, हम अपने होंठों को सीते थे
वह मेरे पल वापिस कर दो, जो तेरे इंतजार में बीते थे।