नया सबेरा आयेगा?
नया सबेरा आयेगा?
मेरे जीवन की बगिया में खुशियों का फूल खिलायेगा
रोज रात को मैं यही सोचता कि नया सबेरा आयेगा
सुबह की किरणें जब भी निकली, उठा मैं प्रभात हुई
जीवन के जद्दोजहद की, रोज तो नयी शुरुआत हुई
ना जीवन को बदल सका मैं और न ही कोई बात हुई
हम मेहनतकश लोगों की, जैसी सुबहा वैसी रात हुई
तन की थकन को मन अगन को, जान सका न कोई
तन तो भीगा धार पसीना और अंखियन नीर भिगोई
सब यही कहते हैं रुक दो पल, राम राज्य तो आयेगा
रोज रात को मैं यही सोचता कि नया सबेरा आयेगा
बच्चों की किलकारी में भी देखो कितना है दर्द मिला
कृश काया है, सूखे हैं स्तन, कैसे कहूं मां दूध पिला
वह बेबस नजरों से देखे जैसे कोई कैक्टस हो खिला
वह रोती है, न सोती है, मां मुझे तुझसे न है कोई गिला
हम गरीब हैं, बदनसीब हैं, भाग्य में हमारी क्या लिखा
ऐ मेरे मौला, ऐ मालिक, क्या तुझको भी न दर्द दिखा
हम भी तो तेरे बाग के पंछी, क्या परवाज करायेगा
रोज रात को मैं यही सोचता कि नया सबेरा आयेगा
कितने मौसम ऋतुएं बीती, पर हाथ आज भी रीते है
दर्दों की चादर हम अपने, आंसू और आहों से सीते है
लोग ये कहते, ताने देते हमें , हम ठर्रा - दारू पीते है
कोई न बन कर आये सहारा, हम कैसा जीवन जीते हैं
पागल मन का ये पागल पंछी, सपने कितने दिखायेगा
टूटा घड़ा है रे मिट्टी का तू, कैसे भला तू जुड़ पायेगा
फिर आयेगा चुनाव का मौसम नेता सपने दिखायेगा
रोज रात को मैं यही सोचता एक नया सबेरा आयेगा।