एक दर्द - एक अहसास
एक दर्द - एक अहसास
मां रंग दे बसंती चोला मेरा, हर वीर, शहीद यही गाये
चलो याद करें उनको भी हम, जो लौट कर घर न आये
सर कटा भले, पर रूके नहीं, दुश्मनों के आगे, झुके नहीं
राह भले रही, जोखिम भरी, कभी हारे और कभी थके नहीं
दुश्मन को सबक सिखाना है, मन में एक ऐसी लगन लिए
बढ़ते ही रहे दुर्गम राहों पर, वो दिल में विजय की अगन लिए
जिनके अधरों पर चीख नहीं, बस जय हिंद की बोली थी
बिखरे और घायल जिस्मों में, सीनों को भेदती गोली थी
विदीर्ण शरीर हुआ उनका, पर उनके कदम न रुकने पाये
चलो याद करें उनको भी हम, जो लौट कर घर न आये
कितनी राखी के बंधन जो, उस युद्ध भूमि में टूट गये
कितनी मां की सूनी गोदी कर, बेटे सदा को रूठ गये
जो अपने सर पर बांध कफन, उस युद्ध भूमि में डटे रहे
जब तक श्वासों का साथ रहा, वो राह रोक के अड़े रहे
कितने सिंदूर मिटे माथे से, जब खेली युद्ध की होली थी
उसकी तो सोचो जिसके कांधे पर, बेटे की अंतिम डोली थी
पीठ नहीं दिखलाई कभी, हर घाव तो सीने पर खाये
जो गये थे वहां हसते हसते, पर ओ
ढ़ के तिरंगा आये
चलो याद करें उनको भी हम, जो लौट कर घर न आये
कुछ लौटे अपने पैर गवां, कुछ चलते हैं ले कर बैशाखी
कुछ दोनों हाथ गवां बैठे, बहना बांधे गर तो कहां राखी
कुछ आखों के मोती अपने, उस युद्ध समुद्रंर में खो आये
कुछ चूड़िया, पायल भी बाजी, पर झंकार न वो फिर कर पाये
हम अपने स्वार्थों में डूब गये, जिनका अहसान चुका न पाये
चलो याद करें उनको भी हम , जो लौट कर घर न आये
एक वो थे हमें बचाने को, लड़ते भी रहे और मरते भी रहे
तिरंगे का मान न झुक पाये, आठहों पहर वो जगते ही रहे
धिक्कार हमें है ऐसे वीरों की, गर पतवार न बन पाये
डगमगाते उन दीपों गर को, आंधियों से न बचा पाये
हम कृतध्न भारतवासी, उनके उस त्याग को जैसे भूल गये
सूने सूने स्मारक पड़े हैं, हम दीप जलाना भी भूल गये
वो रक्त बहा गये, हमारे लिए, हम आंसू भी छलका न पाये
चलो याद करें उनको भी हम, जो लौट कर घर न आये
मां रंग दे बसंती चोला मेरा, हर वीर शहीद यही गाये
चलो याद करें उनको हम , जो लौट कर घर न आये।