समर्पण बदले
समर्पण बदले
व्योम, व्याकरण, व्यथा हमारी
देह,धरा, दर्पण बदले
जीवन पृष्ठों पर अर्थो के
कैसे भाव समर्पण बदले।
मन में एक महा भारत सा
संघर्षो का समर शेष है
शकुनि पांसे रोज़ बिछाता
कैसी दुनिया क्या ये देश है
अर्थ बड़ा अपनों के आगे
सब ने अपने अर्पण बदले
जीवन पृष्ठों पर अर्थों के।
शाप किसी का वनवासी मैं
रोज़ है मुझको देश निकाला
पग पग पर मारीच खड़े है
है फरेब की ओढ़े दुशाला
युग बदले पर कुछ ना बदला
कितने चेहरे रावण बदले
जीवन पृष्ठों पर अर्थो के ।
अट्टहास अवनि अम्बर का
आठों पहर है अंतर्मन मै
अगली पीढ़ी बिसरे पिछली
अश्रु गंगा ठहरे नयन में
मोक्ष मिले दुनिया से कैसे
सबने अपने तर्पण बदले
जीवन पृष्ठों के अर्थो पर ।
