STORYMIRROR

निखिल कुमार अंजान

Tragedy

4  

निखिल कुमार अंजान

Tragedy

माँ रहने जब मेरे घर आएगी......

माँ रहने जब मेरे घर आएगी......

2 mins
153

नौ दिन नौ रातें जब 

रहने माँ मेरे घर आएगी

देख जग में अत्याचार हिंसा

कितना वो व्यथित हो जाएगी

किस मुख से उसके समक्ष

जाऊँगा


कैसे उसको दुराचार की कथा

सुनाऊँगा

कन्या पूजन को लेकर भी मन

में संशय होता है

मानवता को कलंकित करने

वाला न जाने

किन भावों से उन नन्हे नन्हे चरणों

को धोता है


पहन संत का चोला अंदर से

हवस के वश में होता है

आजकल छोटी छोटी बच्चियों

का भी शोषण होता है

कैसे माँ के आने की खुशी मनाऊँ

अंदर से हृदय रोता है


रिश्तों की गरिमा को भूलकर

अपनों ने बलात्कार किया है

नातेदारों ने बहन बेटी की

अस्मत को तार तार किया है

नग्नता नित दिन अपना परचम

लहरा रही है

क्यों भला समाज के ठेकेदारों

की आवाज़ नहीं आ रही है


ऐसे कैसे नवरात्रि का पर्व मैं

बना पाऊँगा 

कोई भेजेगा भला क्यों अपनी

बिटिया को ऐसे माहौल में

कहाँ से मैं कन्या पूजन के

लिए कन्या लाऊँगा

रोज़ अखबार के पन्ने इन खबरों

से पटे मिल जाते हैं


आम बात हो गई है रेप होना

मन में न कोई भाव आते हैं

ज्यादा हो तो मोमबत्ती ले सड़क

पर उतर आते हैं

कौन भला मुझ को ये विश्वास

दिलाएगा नौ दिन ही सही

मेरे शहर में ही किसी बहन

बेटी बच्ची स्त्री 

की अस्मत को नहीं लूटा जाएगा 

नौ दिन नौ रातें जब रहने माँ मेरे

घर आएगी

देख इन हालातों को क्या प्रसन्न

हो जाएगी

अंजान किस मुख से उनके

समक्ष जाएगा

कैसे कलयुग के राक्षसों की कथा

सुनाएगा........



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy