पिंजरा
पिंजरा
दूर देश से बेशकीमती,नक्काशीदार पिंजरा मंगवाया।
उस पर बड़े ही जतन से, हीरे और पन्नों को जड़वाया।
रत्नजड़ित कटोरों में श्रेष्ठतम दाना - पानी रखवाया।
पिंजरे के अंदर बहुमूल्य ईरानी कालीन भी बिछवाया।
फिर भी ना जाने क्यों इसमें रहने वाली कोई चिड़िया,
कभी खुश नहीं रहती,ना ही फुदकती, ना ही चहकती।
कुछ दिन पंख फड़फड़ाती,फिर छटपटाकर मर जाती।
पूरा का पूरा 'काग समाज' यह रहस्य समझ ना पाया।
लगता है अब इस पिंजरे का शुद्धिकरण कराना होगा,
इस पिंजरे को रेशम से ढक,बुरी नजर से बचाना होगा।
शायद कोई चिड़िया बच जाए तो स्पर्श सुख मिल पाए।
काश! कोई समाज के इन निर्लज्ज ठेकेदारों को बताए,
हर चिड़िया खुले,सुरक्षित आँगन में ही चहक पाती है।
पिंजरे में सोन चिरैयाओं की आवाज़ घुटकर रह जाती है।
सोने के कीमती पिंजरों में तो बस मासूम सी मुनिया की
और उसके अधूरे सपनों की कब्रगाह ही बन पाती है ।