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Ritu Agrawal

Action

4  

Ritu Agrawal

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अनजान रास्ते

अनजान रास्ते

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चल रही थी अनजान रास्ते पर अकेली,

लग रही थी जिंदगी एक अजब पहेली।

विचारों के समंदर में डूबती-उतरती, 

निर्विकार नैनों से शून्य में ही तकती।

जीवन निरुद्देश्य सा ही गुजर रहा था,

मुट्ठी से वक्त रेत सा फिसल रहा था।

लगता था अब अंतिम क्षण है निकट,

नैराश्य का मायाजाल था बड़ा विकट।

फिर आए तुम आस बनकर जीवन में,

अवसाद से टूटे मन को जोड़ा था तुमने।

मेरे लिए दुनिया का मौसम बदल गया,

निराशा का हर स्याह बादल छट गया।

अब अनजान रास्ता बन गया गुलिस्तां,

तुम्हारे इश्क ने महकाया मेरा जहान।

वादा करो साथ नहीं छोड़ोगे कभी भी,

तेरे संग ही तो है मुकम्मल मेरी जिंदगी।

खुदा का करती हूं तहे दिल से शुक्रिया,

जिसने तेरे जैसा हमसफ़र मुझे दिया।



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