कुटुंब
कुटुंब
मैं रावण ! अति तेजोमय अतिबलशाली,
स्वर्ण देश लंका का एकमात्र अधिकारी।
चौंसठ कलाओं का मैं था इक स्वामी,
मेरे पराक्रम और रूप पर जग बलिहारी।
परम शिव भक्त और शास्त्रों का ज्ञानी,
संपूर्ण जगत में मेरे सहस्त्रों अनुगामी।
फिर भी जीत गए तुम मुझसे, श्रीराम !
मुक्ति देकर, पहुँचाया तुमने मुझे परमधाम।
नियति ने लिख रखा था मेरा यही अंजाम।
शायद रख न सका मैं अपने कुटुंब में एका,
इसलिए मेरे भाई ने ही दिया मुझे धोखा।
तुम्हारे संग रहे सदा, अनुज लक्ष्मण भ्राता।
जिससे फहरी जग में तुम्हारी विजय पताका।
सब जगत सुन ले आज, ये गूढ़ ज्ञान की बात,
रखना सदैव अपने कुटुंब को एक साथ।
तब न रहेगा बैर मन में, होगा जगत कल्याण।
घट जाएँगे दुर्दिन तुम्हारे, खूब मिलेगा मान सम्मान।
