मेरे देश के पहरेदार....
मेरे देश के पहरेदार....
था प्रफुल्लित वतन हमारा
फैला था तब भाई चारा
मातृ भूमि का एक बेटा
दूसरे पे कृतज्ञता था दर्शाता
माता के आंचल पे
भाई बंधुत्व की बांटी मिठाई थी
दूर गगन से पुष्प रोहन कर
Korona worriers को दी सलामी थी
तब एक रक्षक ने दूजे भाई को
भर भर के प्यार लुटाया था
संकट की घड़ी मे साथ है सब
नीले अम्बर से पुकारा था
इस बीच फिर शत्रु की हिमाकत
चीख वतन तक आई
रण बाँकुरो ने शेर सी गर्जन से
फिर किया उन्हें धराशायी
पर माँ का आंचल भीग गया
सपूतों के रक्त के धारे थे
कर गौरवान्वित शहिद हुए
जो मातृभूमि के राज दुलारे थे
ये देश भक्त, ये राष्ट्र भक्त
सच्चे अर्थों मे रखवाले है
मै सोती हू ले चैन सुकून
इस हेतु ये अपनी नींद गवाते है
बस अश्रु पूर्ण नैनो से वतन जब
इन्हें विदाई देता है
पुनः उबलते फ़ौलादी सा
सीपाही जन्म नया लेता है
कोई सीमा पे दुश्मन से
कोई बीमारी से टकराए
कुछ खाकी वर्दी से लिपटे
कोई रंग श्वेत चढ़ाए
कुछ समाज सेवा के महानुभाव
प्राणों की बाजी लगाते
फिर भी कितने किंकर्तव्यविमूढ़ है हम
जो ये कुछ भी समझ ना पाते
ग़र नहीं परवाह खुद की तुमको
इनके हेतु तो तुम रुक जाओ
ना व्यर्थ जाने दो शहादत इनकी
Corona worriers को ना झुठलाओ।
