खुद को पूर्ण अब कहता है...
खुद को पूर्ण अब कहता है...
लाल वर्ण में सज्ज प्रियतमा,
कोमल पग भरती दिखी
लाल महुआर, लाल नक् पालिश,
लाल लहंगा संग चलती दिखी
चाँदी चमकीली बिछिया सारी,
पैरो में नूपुर गूंजे,
लाल वर्ण में हम (दूल्हे) भी बैठे,
आपके (वधु) दर्शन को कई रीत सजे |
गोरी कलाई में, लाल चुडिया,
लाल मेहंदी हाथो की,
सोने के कंगन खन-खन करते,
कमर सजे सुहानी करधन भी ।
सोने के हार ने गला सजाया,
गुल बंद महारानी बनाती है ।
सवर्ण कर्ण फूल, कानो में दमके,
नाक की फूली चमक बिखराती है ।
माथे पे बिंदिया एसे सिमटे,
कि सितारे आशीष देने आए,
काले केश घटा सी जिसमे,
प्यार का आद्र समता जाए ।
हाए मतवारी नैना आज,
काजल के जिसमे पहरे है ।
मासूम चहरे के भाव सरल,
सादगी सौम्यता से उजरे हैं ।
लाल अधर मुस्कान लिए,
तुम्हे सबसे जुदा बनाती है ।
एक पल भी नजर हटे कैसे ,
चमकती बिंदी ध्यान लुभाती है ।
पूनम के चाँद सी उजली तुम,
सादगी ही शीतलता है ।
मेरी कल्पना हुई जीवंत आज,
ये मन आप संग, खुद को पूर्ण अब कहता है ।