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Renu Sahu

Children Stories

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Renu Sahu

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दादी तेरा आँचल......

दादी तेरा आँचल......

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छत था वो हमारे लिए,

जब सूरज गुर्राता था। 

और कहो पर्दा,

जब बाहर का डर सताता था। 


सबसे सस्ता रुमाल,

चाहे जो चाहूं पोछना। 

की हो अपना धुला चेहरा, या सर्दी में टपकती नाक,

बरसाती लाल आँखे, या गीले मेरे हाथ।

ना जाने कितने तरीके से हमारे काम आता। 

दादी तेरा आँचल, अब बहूत याद आता। 


सफ़ेद सामने पल्लू,

तुम अंग सजाया करती थी। 

उसके एक छोर में, कुछ 

सिक्के बाँधा करती थी। 

हम जाते तिरंगा लहराने,

वो गांठ खोलकर के कहती,

एक-एक रूपए के सिक्के, 

हम बहनो के हाथ दिया करती। 

उसी आँचल में लाती थी दादी,

खरीद कर के सीता फल,

पर बेदाग़ ही रहता, साफ़-साफ़ सा,

आँचल, बादल सा उजला और निर्मल। 


 वो आँचल बिछा गोद में तेरे,

पिताजी को सर रखते देखा। 

उसी आँचल को दीदी के सर रख, 

हल्दी पर तुमने आशीष दिया। 

उन पल्लू से आंसू पोछे,

अपने और अपने जन की। 

दूकान से चॉकलेट हमारे लिए,

उसी आँचल में बांध कर लाती थी। 

वो सफ़ेद आँचल, दुनिया हमारी,

कुछ ऐसी उनकी कहानी थी। 

कल्प वृक्ष सा फल देता,

हमारी इच्छा छोटी पूरी करता,

तेरे साड़ी का मात्र हिस्सा नहीं दादी,

हमारे लिए वरदान था 

दादी तेरा उजला आँचल, चलता फिरता भगवान् था। 


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