दो प्यारे बिल्ली के बच्चे.....
दो प्यारे बिल्ली के बच्चे.....
मासूम सी दो शक्ल थी ,
कितने प्यारे से फर से लिपटे थे।
अपनी माँ का इंतज़ार करते ,
दो बिल्ली के बच्चे मिल गए थे।
मैं हूं तो एक लड़की ,
फिर भी मेरा मन न उतना पिघला था।
भाई के अंदर की ममता का ,
देखा मैंने आइना था।
चिंता थी उसको इनकी ,
बड़े प्यार से इन्हे सवारा था।
सुबह से शाम देख रेख ,
खाने पिने का किया ठिकाना था।
हां देखा, नन्हे कदमो से ,
उस तक चल कर आते थे।
उसके हाथ पैर पे चढ़,
संग उसके इतराते थे।
छोटी छोटी आँखे थी ,
उतनी ही प्यारी आवाज़।
एक फुल एनर्जी वाली ,
दुसरी कि हलकी आवाज़।
खुशनुमा कुछ पल था वो ,
उसके अपने प्यारे दोस्त से।
उनके होने से वो खुश था ,
जैसे उसके छोटे बच्चे थे।
वो छोटे-छोटे सफेद फर,
अब मुझको भी प्यारे हो गए।
भाई को ही वो अपनी माँ माने,
हम तो पहले ही किनारे हो गए।
ममता नहीं जाती वर्ग विशेष,
बस मन की भावना है।
जीवो से जीव प्यार करे,
बहुत भली कामना है।
बड़ी हुई तो क्या हुआ,
मेरे भाई से मैंने सिख लिया।
दो प्यारे बिल्ली के बच्चे,
भाई, माँ ! जिनकी बन गया।