रेणु हू बिखरी सी, इठलाती नदी और कोमल फूल भी... ना करना स्वाभिमान को आहत, हरगिज ओ प्रिये! वर्ना हू गुलाब की शूल भी....
प्रेम बरसाती अगर विधात्रि है कठोर आवरण, कोमल हृदय कर्तव्य मूर्ति पिताजी है। प्रेम बरसाती अगर विधात्रि है कठोर आवरण, कोमल हृदय कर्तव्य मूर्ति पिताजी है।