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Renu Sahu

Abstract Classics Inspirational

4.7  

Renu Sahu

Abstract Classics Inspirational

वो पिताजी है

वो पिताजी है

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मुस्कुराहट दिखी जिस चेहरे पे सदा

पर दिल के अंदर दर्द था

पैसे बहुत है, तुम अपना काम करो

दिमाग उनकी पूर्ति करने मे व्यस्त था


होती है सुबह, चिंता और उम्मीदों से

और रोज की रात, थकन से पूरी होती है

एसी हस्ती, जिनकी जरूरत

बच्चों पे शुरू और खत्म होती है


हम तो कहते सब कुछ आपसे

आप किनसे साझा करते हो?

हम तो रोते है आपके कंधे सर रख

आप अपने आँसू कहा पिरोते हो ?

हाँ देखा है गुस्सा आपका,

लेकिन टूटना तो कभी नहीं

बोलो ना इतना साहस, 

कहां से पैदा करते हो ? 


लगता था मानो,

आप बचपन से ही ऐसे हो।

हर समस्या का समाधान

यूँ चुटकियों में हल करते हो।


तब ज्ञात ना हो पाया था

आपमे भी इंसान है

वैसा ही दिल वैसा ही जिगर

जैसे बाकी तमाम है


अब महसूस करने लगी हूँ

कमरे में आपका अकेलापन

जिंदगी मे कुछ पल की हताशा

माँ के बिना अधूरा पन


आप की जिंदगी का बस,

खुशनुमा पल ही जाना था।

दुख अंधेरे के बादल से,

जहाँ हमारा बेगाना था


इस दरिया को,

मैं जानना चाहती हूँ

कम से कम आधार बन,

उनका हिस्सा बाटना चाहती हूँ।

चाहती हूँ कि, केवल उस सिर

सुख और खुशी का पहरा हो।

बस एक यही कारण,

काबिल होना चाहती हूं


हे ईश्वर के दूसरे अद्वितीय कृति,

हर बालक पे हो तेरा आशीष

शब्द नहीं खींच पाएंगे

अपने अक्षर से तेरी तस्वीर


ममता से भीगी, कोमल हृदय 

प्रेम बरसाती अगर विधात्रि है

कठोर आवरण, कोमल हृदय

कर्तव्य मूर्ति पिताजी है।


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