गायब कहाँ हो जाते हो ?
गायब कहाँ हो जाते हो ?
हर बार जब भी खुद को, समेट कर मनाती हूँ।
खुद को बांध कर, मजबूत फिर बनाती हूँ।
तभी फिर क्यों, सुन्दर सी दस्तक देकर,
सम्भले दिल में हलचल देकर,
अचानक फिर कहीं बिना बताए,
कभी ना पूरा होने वाला इन्तजार बनकर,
गायब कहाँ हो जाते हो ?
क्यों एहसास है इसे, वहाँ भी ऐसा कुछ टूटा है।
जैसे बिखरा यहां सब कुछ, उनका भी अक्स कुछ टूटा है।
जो है जैसा जहाँ, मैंने तो मान लिया।
मेरा होता तो मुझ तक आता, नहीं है, अब ये जान लिया।
लेकिन प्यारा एहसास बनकर, दस्तक देते क्यों चले आते हो ?
और फिर,
कभी ना पूरा होने वाला इन्तजार बनकर,
गायब कहाँ हो जाते हो ?