अँधेरा
अँधेरा
अँधेरा मुझे पसंद है
समय देता है सोचने का
चिंतन और मनन का
उलझन सुलझाने का
सवालों के जवाब ढूँढने का ।
जब जाती हूँ अंधेरे के आगोश में
तब दे पाती हूँ खुद को समय
सोचती हर बात को
जोड़ती हूँ मन के तारों को
और पा लेती हूँ जवाब
अनसुलझी पहेलियों का।
मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर इसी अंधेरे में
खूब बातें करते हैं
जब हो जाता है मन शाँत
चली जाती हूँ निंदिया के गोद में
नई सुबह के स्वप्न लेकर
विदा कर देती हों अँधियारे को।
और फिर....
स्वागत इक नई सुबह का
नये संकल्पों के साथ
लग जाती हूँ उसी दिनचर्या में ...
सच में ...
अगर अँधेरा न हो तो प्रकाश का
कौन करेगा इंतजार ?
और ..
अगर अँधेरा न होता तो
कैसे दूर होगी मन व तन की थकान ?
ज्ञान के प्रकाश के अज्ञानता का अँधेरा यदि हो जाए दूर तो
कोई अँधेरा मानव को डरा नहीं सकता ..यहाँ तक कि करोना का भूत भी नहीं ...
