किताब: अनन्त ज्ञान का भंडार
किताब: अनन्त ज्ञान का भंडार
आज का यह अनमोल अवसर
जोड़ रहा है अक्षर संग अक्षर
अक्षर फिर शब्दों में ढलकर
संजो रहे हैं एक आब
अंत में मिलजाए बनकर समन्दर रूपी एक किताब।।
दिखलाए कभी कविता एक सुहानी सी
पन्नों के पर्दों से झांके कभी,नज़्म एक रूहानी सी
कभी तजुर्बों से हमको सिखलाए
कभी संग में झलके एक शबाब
समंदर रूपी एक किताब।।
तन को एक इंसान बनाए
गुणों से अपने हमको सजाए
परस्पर पथ हमको दिखलाए
लेखक के दिल का पहला प्यार ,दमके बनकर एक रूबाब
समन्दर रूपी एक किताब।।
तमस की यह साथी बने
ज्ञानी की यह लाठी बने
वफा का खिताब बने छिपाए एक सूखा गुलाब
समंदर रूपी एक किताब।।