रहस्यमयी सफ़र
रहस्यमयी सफ़र
कल क्या हो पता नहीं
खुशी हो या गम पता नहीं
कोई नया साथी मिल जाए
या अपना कोई दूर हो जाए
दुनिया के रंग-ढंग समझ न आए
तर्कशास्त्र भी कोई काम न आए
साथ निभाने की बातें करते लोग ही
कब आस्तीन का सांप बन जाएं?
जीवन की सादगी यूं गुम हो जाए
क्या मालूम कब किसे अहं छू जाए
माया में डूबे हुए सिकंदर ना जाने
कब मुंह के बल गिर जाए........?
निर्धन व्यक्ति की निर्धनता
क्या पता कब छूमंतर हो जाए
उसके ईमान का मीठा फल ही......
उसकी ज़िंदगी की संजीवनी बन जाए
चल पड़ा था जो कुमार्ग पर
आज सुमार्ग की ओर बढ़ जाए
या बांटता फिरता था जो ज्ञान के मोती
आज वही घोर अपराधी बन जाए.....
ज़िन्दगी की इस भागदौड़ में मानो
कोई पल बुरा कोई हसीं बन जाए
खट्टे-मीठे अनुभव से मिलकर....
ये रहस्यमयी सफ़र तय हो जाए।