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Ranjeeta Dhyani

Tragedy

4  

Ranjeeta Dhyani

Tragedy

आलसी मानव

आलसी मानव

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9

कल आज कल करते हुए 

ना जाने कितने बरस बीत गए


ना मिली मंज़िल ना आशा मिली

दर - दर भटकते बस निराशा मिली


समझा कर थक गए बड़े सयाने कितने

अक्ल में पत्थर पड़ गए ना जाने कितने


आज दुर्बुद्धि मानव समय गँवा कर सिर अपना धुन रहा

ना संभला, ना सीखा अतीत से, केवल शूल पथ वो चुन रहा। 


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