दिवाली हम मनाते हैं
दिवाली हम मनाते हैं
चलो दर उनके चल कर के दिवाली हम मनाते हैं।
भटकते हैं जो गलियों में उन्हें मंज़िल दिखाते हैं।।
पड़ी है मार किस्मत की दबोचा मुफ़्लिशी ने आ।
लगाकर कंठ से उनको नए कपड़े दिलाते हैं।।
मिटाकर दूरियाँ सारी ख़ुशी से भेंट देकर हम।
चलो अब उनकी कुटिया में दिए मिलकर जलाते हैं।।
जलाकर प्रीत की शम्मा चलो रौशन करें दिल को।
प्रथा पिछली बदलकर हम नए मंज़र सजाते हैं।।
करे हर आरज़ू पूरी मिरा 'माही' सभी की आज।
मगन हो पूरी शिद्दत से उसे फिर से बुलाते हैं।।