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Pratibha Mahi

Abstract

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Pratibha Mahi

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बहती है गंगा जैसे, बहते जाइए

बहती है गंगा जैसे, बहते जाइए

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बहती है गंगा जैसे, बहते जाइए

अच्छे अच्छे लम्हों को, गहते जाइए


पा ही लेगी मंज़िलों को, आप ही नदी

ठोकरें खा दर्द सब, सहते जाइए


अपने मद में कर दिये, जो किले खड़े

काँच से खुद तोड़कर, ढहते जाइए


महफ़िलें बज़्म-ए सुखन सज रही यहाँ

दास्तानें इश्क़ की, कहते जाइए


शुक्रिया 'माही' करे, खुदको वार कर

जैसे राखे माहिया, रहते जाइए।


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