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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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खूबसूरत दुनिया

खूबसूरत दुनिया

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मैं चली .... मैं चली, घूमने दुनिया को ....खूबसूरत किसी गली, में तलाशने जहाँ को।

दरिया के पास ....बैठ कर मैं, जी भर के, देखूँ दरिया को।

बागों में फूलों की, सुगंध से महक जाऊँ, फिर जोर से दौडूँ, पकड़ने गौरिया को।

मैं चली .... मैं चली, घूमने दुनिया को ....खूबसूरत किसी गली, मैं तलाशने जहाँ को।

बादलों में उड़कर ....प्रेमी के गीत गाऊँ, जब और मस्ती मचले, तब चूम लूँ हवा को।

ऐसी अनोखी यात्रा का, अंत ना हो कोई ....उसके संग चल के, मैं जीत लूँ दुनिया को।

मैं चली .... मैं चली, घूमने दुनिया को ....खूबसूरत किसी गली, में तलाशने जहाँ को।



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