ग़ज़ल
ग़ज़ल
बेतहाशा खुशी के पलों के लिए।
ज़िंदगी जी रहे कुछ क्षणों के लिए।
ये कदम चल पड़े हैं नई राह पर।
खोज करने नए रास्तों के लिए।
बंद दहलीज धोखों के कारण हुई,
जो खुली थी कभी दोस्तों के लिए।
यूँ भी कुछ लोगों के साथ होता रहा
जीते मरते रहे चाहतों के लिए।
लौट कर ख़्वाब से खुद को पाया "कमल"
खो गए थे वहाँ हम ग़मों के लिए।
