अंतर्द्वंद-16
अंतर्द्वंद-16
हाँ! देखा तो मैंने भी था,
उसको जाते हुए,
तुमको भरमाते हुए।
मैं कुछ न बोला था।
राज़ इसका न खोला था।
लेकिन आज बोलता हूँ।
राज़ इसका खोलता हूँ।
मेरी बस यही थी मजबूरी,
मैं न चाहता था तुमसे दूरी।
तुम्हारी हर धड़कन पर,
मेरा भी अधिकार है।
जितना उसको तुमसे था,
उतना मुझे भी प्यार है
तुम जितनी बार धड़कते हो,
मैं उतनी बार ही खिलता हूँ।
मैं साथ तुम्हारे रहकर भी
कितना तुमसे मिलता हूँ ?
फिर भी तुम्हारी खातिर मैंने
हर नस का जोर लगाया है
सबको तुमने अपनाया था
पर मुझको कब अपनाया है।