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Amit Kumar

Abstract Tragedy Inspirational

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Amit Kumar

Abstract Tragedy Inspirational

शहर जलाने के लिए

शहर जलाने के लिए

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एक चिंगारी काफी है पूरा शहर जलाने के लिए,

फिर भी लोग हाथों में मशाल लिए फिरते हैं।

 कारवाँयें सबब कुछ इस तरह मिला हमको,

हाथों में खंज़र और लबों पे मुस्कान लिए फिरते हैं।


क़फ़स टूट गया फिर हम असीर ही रहे,

क्योंकि यकीं और जज्बात लिए फिरते हैं

महज़ चंद क़दमों के ही फासले हैं दरम्यान,

पर गिले, शिकवे, ज़ख्म और घाव लिए फिरते हैं।


अभी अभी उस दहलीज़ पर कदम रखा ही था,

कि तमाम कानूनों का फलसफा आ गया,

ऐसा करना, वैसा करना, ये न करना, वो न करना,

दुनिया में फजूलियत का शान लिए फिरते हैं।


तोड़ दो उन तमाम बंदिशों को, खुद के लिये,

भरो एक और उड़ान, बस खुद लिए,

बता दो दुनिया को, कि तुम उन जैसे नहीं,

जो दिलों में कुछ, दिमाग में कुछ और लिए फिरते हैं।


असीर - बंदी

क़फ़स - पिजड़ा


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