लालची हवसी
लालची हवसी
ख़ौफ़नाक से भी ज़्यादा भयावह है ये सच..
उनकी खुद की ही सच्चाई जो खुद
से ही घृणा करती...
जीवन में ऐसे मोड़ आ गए जब थी वो,
किसी दरिंदे हवस के लालची शिकंजे में
क्या कर पाती छोटी सी मासूम की जान
जब वो हो जाती खून से लथपथ दरिंदों
की शिकार..
लाख रो रो के बोली छोड़ दो मेरा हाथ
मुझे छोड़ ना कर मेरा ऐसा अपमान
जीना मुश्किल हो जाएगा..
ना कर तू ऐसा हवसी का काम
पर कहा माने लालची हवसी के शिकार
कर दिया निर्वस्त्र उसको..
दे दिया हवसी का पहचान
फूल से कोमल शरीर पर कर
दिया दागों का निशान...
अब तो वह पल पल मरती रहती है
जीवन को अपने कोसती रहती है
है ऐसे मानवता पर धिधकार जो
करें नारियों का अपमान....!!